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यतिल ।। ४४ ।।
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सर्क चिय कुतो ॥ ११२ ॥ सहसा असाचारी परपमायंमि जो परुइ पला । खखमित्तिव छ किरिया सलाह शिका |इवे तस्स ॥ ११३ ॥ दवाइनानिजरां श्रवमनंतो गुरुं असकचारि जो । सिवनूइब कुतो हिंरुइ संसाररन्नंमि ॥११४॥ |दवइ सकारंजो अक्करिसजएएए कम्मेण । निखणेण सापुबंधं एकाइ पुए एसऊिं च ॥ ११५ ॥ संघयणादणुरू सकारंजे व साहए बहुअं । चरणं निवरुइ न पुणो श्रसंजमो तेणिमो गरु ॥ ११६ ॥ संघयणाईावणं तु सिढिला - ए जं चरणघाई । सकारंजा तयं तबुडिकरं जर्ज जयिं ॥ ११७ ॥ संघयणकाल बलदूसमारयालंबणा धिणं । सवं । चिय लियमधुरं शिरुडमाठ पमुच्चति ॥ ११८ ॥ कालस्स य परिहाणी संजमजुग्गाइ एत्थि खित्ताई । जयाइ वट्टिश्रबं प | उ जयणा जंजए अंगं ॥ ११९ ॥ जाय गुणेसु रागो पढमं संपत्तदंसणस्सेव । किं पुण संजमगुण श्रहिए ता तंमि वत्तवं ॥ १२० ॥ गुणवुढि परग्गयगुणरत्तो गुणलवं पि संसेइ । तं चैव पुरो काढं तग्गयदोसं वेहे ॥ १२१ ॥ जह अमुत्तयमुोि पुरो कयं आगमेसिनद्दत्तं । थेरा पुरो न पुणो वयस्खखि वीरणादेणं ॥ १२२ ॥ एतच्चिय कि कम्मे अहिगिञ्चासंबणं सुदयं । गुणलेसो वि अहिग जं जािं कप्पजासंमि ॥ १२३ ॥ दंसणनाणचरितं तवविषयं जत्थ जति पासे । जिपन्नत्तं जत्ति पुचए तं तहिं जावं ॥ १२४ ॥ परगुणसंसा उचिया अनक्षसादारणत्त क्षेत्र तहा। जह विहिया जिएवइया गुण निहिणा गोअमाईणं ॥ १२५ ॥ परगुणगहणावेसो जावचरित्तिस्स जह नवे पवरो ।। दोसलवेण वि निणं जहा गुणे निग्गुणे गुणइ ॥ १२६ ॥ परिबंधस्स न देऊ पियमा एयस्स हो गुणही हो । सयणो वा सीसो वा गणिवर्ड वा जयं जमिश्रं ॥ १२७ ॥ सीसो सनिल वा गणिबर्ड वा न सोग्गई पेइ । जे तत्व नाणदंसणचरणा ते
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