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________________ यशोधरा चार EEEEEEEEEEE ॥ अश्य दशमः सर्गः प्रारभ्यते ॥ आवां निहत्य पितरौ । कुर्कुटनवसंस्थितौ ॥ स रेमे पृथिवीपालः । प्रेमशीलां जयाव॥GE] लीं ॥१॥ स तया तस्य सानंदं । नखदंतक्षतादिकः ॥ ब्रमरस्येव पद्मिन्या । सेहे निधुव नोत्सवः ॥ २॥ नानालिंगनलीला हि । प्रतीचंत्यां निजेत्या ॥ स तस्यां निदधे वीर्य । मेघः शुक्ताविवोदकं ॥ ३ ॥ दृष्ट्वा च दीर्घनिःश्वासां । प्रियां लुलितलोचनां ।। समाप्तसुरतोऽप्यासीत्पुनर्मन्मश्रमंथरः ॥ ४ ॥ नूयस्तत्काललालित्य-दर्शनोदितसौष्टवः ॥ नत्तिष्टती नृपो निन्ये । शय्यामालिंग्य सुंदरीं ॥ ५ ॥ गाढसंनोगशिथिला-मत्यंतभ्रांतलोचनां ॥ मुमुचे शुक्रसंपूर्णा । रतशेष समाप्य सः॥ ६ ॥ अत्र वीर्यध्ये जीवौ । पुंस्त्रीलिंगधरौ कणात् ॥ आवां ज्ञावपि संक्रांतौ । स्नुषाकुक्षिसरोरुहे ॥ ७ ॥ देवी बन्नार सा गर्न-मपत्यक्ष्यलक्षणं ॥ कललादिक्र| मेणैव । वईमानं दिने दिने ॥ ॥ पांडुगमस्थलानोगा । मितवागवसादिनी ॥ रराज मा सवेश्स्य । वल्लना गजगामिनी ॥ ए ॥ सीमंतोन्नयनादीनि । मांगल्यानि मनोझया ॥ स तE या सह मस्नेह-मन्वनून्मालवेश्वरः ॥ १० ॥ EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE ॥ 3॥ Jan Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600192
Book TitleYashodhar Charitra
Original Sutra AuthorManikyasuri
Author
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1910
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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