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________________ चरित्रं यशोधर ॥ विपनो यत्र संनूत-स्ताकर्णय तन्नृप ॥ ३१ ॥ या पूर्वनवमाता मे । शिशुमारत्वमा- B गता ॥ स्पाईमानैर्विनिहता । कैवतैः क्रूरकर्मतिः ॥ ३ ॥ ॥४७॥ _सा विशालासमासन्न-ग्रामे राजन्ननूदजा ॥ एडकत्वेन तगर्ने । कर्मन्निः प्रतिपादितः ॥३३॥ मेषः समन्नवं शंगी। शोणदृष्टिस्तुणाशनः ॥ सप्तबदचदश्रोतः। स्मश्रुवान् गजदस्वरः ॥ ३४ ॥ यौवने विषयाकांक्षी। तामेव निजमातरं ॥ संन्नोगार्थ समारूढो । दृष्टो यूथाधिपेन सः ॥ ३५ ॥ तेन यूप्राधिनाथेन । सानिमानेन पापिना ॥ विनिनो मर्मसंस्थाने । विपन्नः सुरतक्लमात् ॥ २६ ॥ सोऽहं तस्यां पुनर्जातः । स्ववीर्येणैव कर्मतः ॥ एवं उर्गतिदग्धानां । तिरश्चां कश्चिनवः ॥ ३७॥ यदि माताऽनवत्कांता । कांता माता तथा पुनः॥ यथा च न पिता कश्चि-पिता स्वयमेव हि ॥ ३० ॥ सोऽहं स्वयंनूरुदरे । तस्यास्तिष्टामि पुष्टिमान् ॥ अन्नवर्ननारेण । सा मंद परिसर्पिणी ॥ ३५ ॥ तां कदापि मृगयाविनिवृत्तो। वंध्यकाननविहारविषमः ॥ कुंडलीकृतशरासनमः । 'पत्रिणा गुणधरो निजघान ॥ ४० ॥ .. १ शरेण । GEREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE FFEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE ॥ ॥ Jan Education International For Personal & Private Use Only www.sinelibrary.org
SR No.600192
Book TitleYashodhar Charitra
Original Sutra AuthorManikyasuri
Author
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1910
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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