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________________ यशोधर चरित्रं ॥ ३ ॥ FEFEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE ॥ ॥ कुंजीपाकप्रतीकार-गानलमयोष्मन्निः ॥ अप्राप्तकाल एवाहं । प्रसूतो नकुलः क- शः ॥ १० ॥ नकुल्या नाकुलीनाया । दीनायाः सूतिकर्मणा ॥ अश्रांतक्षुधया कीणं । कोरं नीरं मराविव ॥ ११ ॥ पशूनां जीवनोपाया । वृत्तिाय्या व्यधायि या ॥ प्रतिकूलेन देवेन। हृता साऽस्यापि पापिनः ॥ १२ ॥ सोऽहमुग्रबुभुकानः । खादनार्थ परिभ्रमन् ॥ नूमिस्थान जग्धुमारब्धः । स्थलशृंगाटकंटकान् ॥ १३ ॥ तहिधाहारसारण । पुष्टं मे पातकैर्वपुः ॥ शंकुकर्णस्य धूम्रस्य । नखिनः कीरवैरिणः ॥ १४ ॥ ३तश्च तत्रैव वने। उप्रवेशे स तादृशे ॥ लब्धजन्मा जनीश्वापि । मृत्वाहिरुदपद्यत ॥ १५ ॥ चटुलयमलजिह्वः स्फारगुंजारुणाको । व्रमरकुलविनीतः कालपाशप्रकाशः ॥ विपुलतरफणावानायतस्वासदंमः । कुटिलगतिरहीं: कुंमलानीमनोगः ॥ १६ ॥ अन्यदा स मया दृष्टः । प्राणयात्रां वितन्वता ॥ कनक्षणसापेक्षः । सर्पो गिरिनदीतटे ॥ १७ ॥ कर्मणः परिणामेन । मया कोपांधचेतसा ।। अविमृष्टपरीपाकं । पुढे स जगृहे फणी ॥ १७ ॥ तेन शीघ्रं परावृत्य । ज्वलनयनतारकं ॥ नोगिना तीक्ष्णदंग । दष्टोऽहं निष्ठुरे मुखे ॥ १ ॥ EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE B॥४ ॥ Jain Education Internatonal For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600192
Book TitleYashodhar Charitra
Original Sutra AuthorManikyasuri
Author
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1910
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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