SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाइअविन्नाणकहाए ॥६॥ सच्चा पुव्वभवधम्मायरिअं मं मण्णित्ता वंदणत्थं निग्गच्छंतो लोगेहिं करुणाबुद्धिए पुणो पुणो अंतो पक्खिमाणो वि दणिकमणो जाव वावीए बाहिरं निग्गओ ताव भत्तिभरूल्लसिअमाणसो बहुपरिवारजुओ सेणिअनरिंदो मम वंदणाय समागच्छंतो तत्थ संपत्तो, तओ दइव्वजोगाओ स दद्दुरो मग्गे सेणिअनिवतुरंगखुरेण खुण्णो तत्थ च्चिय सुझाणेण मरिण सोहम्मदेव लोगे दद्दुरंकनामो देवो समुववण्णो । उपत्तिसमयाणंतरं ओहिनाणेण नियपुव्वभववृत्तंतं नच्चा मं एत्थ समवसरि विणाय सज्जो समागंतूण वंदिऊण नियरिद्धिं दंसिऊण य नियट्ठाणं गओ, अणेण सुहभावणाए एरिसी रिद्धी संपत्ता, सो य महाविदेहे सिद्धि पावि सइ । उवएसो नंदस्स मणियारस, वयविराहणाफलं । सोच्चा दुज्जणसंसगं, दूरओ परिवज्जए ॥ ५७ ॥ araराहणार नंदमणियारस्स सत्तावण्णइमी कहा समत्ता ॥ ५७ ॥ - अप्पपबोहाओ - आत्मप्रबोधात् । महापुरिस दंसणम्मि रणुंदुरस्स अट्ठावन्नइमी कहा-॥ ५८ ॥ महापुरिसमाहप्पं, अप्पमेज्जं सिया जओ । धम्मजिणीसरेणेह, तारिओ मूसगो भवा ॥ ५८ ॥ एगया भगवया गणहरदेवेण धम्मजिणवरो पुच्छिओ - भगवं ! इमीए महईए महालयाए परिसाए पढमं को सिद्धिवसहिं पाविहिति । भगवया भणियं - देवाणुप्पिया ! Jain Education International For Personal & Private Use Only रण्णुदुरस्स कहा-५८ ॥६॥ www.jainelibrary.org
SR No.600189
Book TitlePaia Vinnan Kaha Trayam Part 02
Original Sutra AuthorKastursuri, Chandrodayvijay
Author
PublisherVijay Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
Publication Year1971
Total Pages232
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy