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________________ पाइअविन्नाणकहाए ॥१०७॥ Jain Education International ससागरं तं रुक्खं सागरम्मि पक्खिविऊणं अण्णरुक्खारूढाओ ताओ नियवासम्मि समागयाओ । सागरम्मि पडिओ सागरो वि दुहा नीचअं गओ । जओ वुत्तं— जो अहं पावे, लोहगसियमाणसो । जओ लोहपराहूओ, सागरो सागरं गओ ॥ उवएसो लुद्धसागरसेट्टिणो, अंते जाणिअ दुग्गई । मई धरेह संतोसे, भव्वा इच्छेह सगई ॥९३॥ अइलोहम्म सागरसेट्ठिणो तिणउइयमी कहा समत्ता ॥९३॥ भाव म्मम्म कुम्मापुत्तस्स चउनउइयमी कहा सड्ढो गिहे वसंतो वि, भावधम्मेण भूसिओ | कुम्मापुत्तव्व पावेइ, केवलनाणमुज्जलं ॥९४॥ रायगिहे नयरे गुणसिलए चेहए वद्धमाणजिणो समोसरिओ । देवेहिं समवसरणं विहियं, तत्थ निविट्ठो सिरिवीरो दाणाइच उप्पयारं धम्मं कहेइ । दाण-सील - तव - भाव-भेएहिं चउग्विहो धम्मो हवइ । तेसु भावधम्मो महप्पहावो । भावो भवदहितरणी, भावो सग्गापवग्गपुरसरणी । भवियाणं मणचिंतिअ - अर्चितचिंतामणी भावो ॥ भावेण कुम्मपुत्तो, अवगयतत्तो अगहियचारित्तो । गिहवासे वि वसंतो, संपत्तो केवलं नाणं ॥ इत्थंतरे इंदभ्रूई नामं अणगारे भगवं महावीरं वंदइ, वंदित्ता एवं वयासी - 'भयवं ! को नाम कुम्मापुत्तो ?, For Personal & Private Use Only - उपदेशप्रासादात् - ॥ ९४ ॥ कुम्मापुतस्स कहा- ९४ ॥१०७॥ www.jainelibrary.org
SR No.600189
Book TitlePaia Vinnan Kaha Trayam Part 02
Original Sutra AuthorKastursuri, Chandrodayvijay
Author
PublisherVijay Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
Publication Year1971
Total Pages232
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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