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________________ तओ उट्ठ-उववेसणं कुणंती मं विप्पयारित्ता कत्थ वि गमिरसीला बट्टइ, सुसीला एसा दसीलविलयव्व पावसिरिचंद- पंकेण अप्पाणं 'मइलिउं कहं पयटिया ?, तत्तं न नज्जइ । नूणं इमिआ कुसंगदोसेण दुट्ठसीला संजाया, रायचरिप४ अण्णहा मारिसे पिययमे लद्धे अण्णेण समं पीइमई कहं होज्जा ?। अहमजणसंगेण इत्थी एरिसी होइ, ४ संदेहरहियं एयं, जच्चसुवण्णस्स टंकणखारेण सह संजोगो होइ, सुगंधियघणसारस्स य अंगारेहिं सद्धिं थिरया, ॥३८॥ हवइ, चओरपक्खी अंगारे भक्खिउं महेइ, उत्तमो य बउलरुक्खो कामवसो मज्ज पिविउं वंछेइ, एवं कया वि कासइ सुहवत्थुस्स असुहे रुई होइ । तद्देव अज्ज एसा मम महिसी मं वंचिऊण कत्थ वि गमणमणा बट्टेइ । किंतु मं जागरंतं नच्चा एसा संकोएइ, तह वि मम पुरओ इमीए पवंचो न ठाहिइ एवं वियारंतं नरवई निहायंतं विण्णाय गुणावली छलं गवेसिऊण सज्जीभूया पत्त-परमपमोया सामघरं गच्छित्था । वियाणियतच्चरित्तो खग्गसहेज्जा भुवई पच्छन्नत्तणेण तं अणुसरित्था। इओ वीरमई संझाए वहुए आगमणं जाव पइक्खमाणा चिटइ, ताव गुणावली तीए दुवारदेसं गंतूणं मंदसरेण दारं उग्घाडावेइ । वीरमई आगयं तं विलोइऊण पहरिसियमणा सायरं तं सक्कारित्था, समुहेण य सविज्जाए पसंसं कासी । अह गुणावली वएइअम्मे ! तुम्ह वयणेण नियपियं वंचिऊण केणावि अलक्खिज्जमाणा तव नेहपासबद्धा इह समागया, एहि तुव जं रोएइ तं निवेएसु, अन्नं च अविलंबेण पुण्णमणोरहा इह हं जाव पच्छा आगच्छामि ताव मम पिओ न जागरेज्ज, जह य स अम्हाणं चरियं न जाणेज्जा तह विहिज्जउ । एयम्मि समए दुवारसमीवसंठिओ चंदराओ १ वनितेव । २ मलिनयितुम् । ॥३८॥ Jain Education Inter For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600181
Book TitleSiri Chandrai Chariyam
Original Sutra AuthorKastursuri, Chandrodayvijay
Author
PublisherNemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size6 MB
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