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________________ चंदरायः चरिए पासंगियं ॥१८॥ कहाणुयोगस्स विसिट्ठया सिरिजिणागमगंथा चउविभागेसु विभत्ता संति, तत्थ धम्मकहाणुयोगम्मि विउल-विविहकहाणं ठाणं विसालं अस्थि, अओ दव्वाणुयोग-चरणकरणाणुयोग-गणियाणुयोगाओ धम्मकहाणुयोगट्टाणं कहं पि न लहुयं, जओ चउपायपल्लंगस्स चउण्हं पायाणं पहाणया अत्थि, तह वि कहाणुयोगेण संपत्तचरणकरणाणुयोगाराहणाए बहवो भव्वजीवा परमपयं पत्ता पाति पाविस्संति य। पुरायणकहा पाइय-सक्कयभासासु विरइया बहुआ संति, ताओ बाल-जुवग-पोढ-वुइढवग्गाणं महुवयारकारिणीओ संति । इह हि मम एसो पयासो पाइयभासाए पारंभिगऽन्मासिवग्गस्स विसेसलाहटुं होज्जा, तं च संलक्खित्ता मरहट्ठ-आरिस-अद्धमागहीभासाए विसिट्टसरलपयोगभरभरियं एयं चरियं मए विरइयं । विसयपहाणत्तणं इह सीलगुणपहावो तह य तित्थाहिरायसिरिसिद्धगिरिमहातित्थस्स दव्व-भावत्थवकयाराहणाए एहिंगपारलोगिगाणुवमफलदाइत्तणं, सुहासुहभावाणं चिंतण-वत्तणाई अप्पणो केरिसाइं सुहासुहफलप्पयाणपक्कलाई भवंति ?। अप्पो वि अप्पणा विहिओ पमाओ गुणावलीए एरिसो जाओ जेण तीए पिय-विप्पयोगाइअच्चंतदुह-दाइकम्मविवागो अणुभूओ । तहा गयणगमणपमुहविज्जासिद्धीए निरंकुसभावं पत्ताए वीरमईए चंदरायपुत्तं पइ निद्दयत्तणं केरिसं विहियं, जओ वुत्तं-'अच्चुग्गपुण्णपावाणं इहेव फलमावइ' त्ति नाएण वीरमई ॥१८॥ www.jainelibrary.org Jan Education Inters For Personal & Private Use Only d
SR No.600181
Book TitleSiri Chandrai Chariyam
Original Sutra AuthorKastursuri, Chandrodayvijay
Author
PublisherNemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size6 MB
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