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________________ सिरिचंदरायचरिण बीओ उसो ॥१५३|| यस्स गुणावलीसुमरणेण य रुद्धकंठस्स तस्स गलम्मि संठित हिट्टमि न ओयरेइ । तारिसं तं विलोइऊण सिवमाला वएइविहंगममहाराय !, मा विसायं कुणिज्जसु । भुंजाहि साउवत्थूई, अंते भई भविस्सइ ॥७५|| इओ वीरमई पंजरदाणाणतरं सहं विसज्जिऊण सहाणं समागया। तो समयण्णू मंती गुणावलि आसासिउं तीए समीवं उवागओ, तइया गुणावली साहेइ-'मंति ! केण वि उवाएण मम सासु विबोहित्ता कुक्कुडरायं समाणेऊण मज्झ समप्पेस, जो तस्स विरहो मम हिययं भिसं पीलेइ, नडा उ मे पइं घेत्तूणं कत्थ वि गच्छिहिरे, तओ पुणो तस्स समागमो कहं होहिइ ?, अस्स नेरभसलस्स पए पए नवनवमित्ता नवनवविलया य मिलिस्सन्ति, किंतु पियविहीणाए मम का गई भविस्सइ ?, तुं पि एयं वियारेसु, कुक्कुडत्तणं गयस्स इमस्स माऊप मणोरहो कया वि सहलो भावी, मम उ जावज्जीवं वाहा भविहिइ, दुद्दचित्ताए तीए पाणविणासगं उवालंभ जीवणपज्जतं कहं सहिस्सं ?, जीवियं आसापासनिबद्धं मं न चइ हिइ, इमा मम सासू पुव्वभववेरिणी अत्थि, जो जीए मम पई विहगो कओ, एहि पि तीए हिययम्मि कोहो न उवसंतो, अग्गओ वि किण्हसप्पिणिव्व इमा मम दुहं विहेहिइ, जो को वि मम पिययमेण सह समागमं कुणेज्ज, तस्स अहं पंजलि विहेमु, मम पाणाई देमु, निच्चं दासित्तणं वहेमु, पाए सेवेमु, सया य तस्स निदेसं सिरंसि धरामु, लोगम्मि हि सव्वे जणा बाहिरं गच्छति, किंतु मम निरंतरदुहदाइणी सासू कत्थइ न गच्छेइ, इमीए ॥१५॥ १. नरभ्रमरस्य । Jan Education international For Personal & Private Use Only VI www.jainelibrary.org
SR No.600181
Book TitleSiri Chandrai Chariyam
Original Sutra AuthorKastursuri, Chandrodayvijay
Author
PublisherNemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size6 MB
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