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________________ हिंगुल ॥ १८ ॥ Jain Educatio अर्थ- जे प्राणी जगतमां शिकारगाहोमां प्राणीने बींधे बे, ते परजवमां नरकमां जश्ने वींधाय बे; एवी रीते श्री जिनेश्वर प्रभु कहे बे. ॥ ३॥ श्वद्वाराणि पंचैव, द्रोहो हत्या तथा जुवि । मांसादनं गुरोर्निदा, तथा खेटकपातकम् ॥४॥ अर्थ- जगतमां नरके जवानां पांच घारो कहेलां बे; प्रोह ( परनी ईर्षा ) हत्या एटले जीवोनी हिंसा, मांसनोजन, गुरुनी निंदा तथा शिकारथी थएलुं पाप ए पांचे नरकनां धारो बे. ॥ ४ ॥ आखेटकं चेद्यदि न त्यजेच्च, परत्र बंधादिक दुःखरा शिम् । सदेत चास्मिन् परमापदं हि यथाऽजपुत्रो रघुवंशजातः ॥ ५ ॥ अर्थ- हे प्राणी ! कोइ पण माणस, परलोकमां जेमां बंधन आदिक दुःखोनो समूह नर्यो पड्यो बे, एवा शिकारने जो नथी तजतो तो ते रघुवंशमां उत्पन्न थला " छाज पुत्रनी पेठे या लोकमां पण अत्यंत पदाने सहन करे बे. ॥ ५ ॥ "" ( इति खेटव्य सन प्रक्रमः ) ( अथ चौर्य व्यसन प्रक्रमः ) चौर्यकर्ता चौरमंत्री, स्थानदचौर रक्षकः । चौरेण सह व्यापारी, चौरः पंचविधः स्मृतः १ tional For Personal and Private Use Only प्रकरणं. ॥ १८ ॥ inelibrary.org
SR No.600178
Book TitleHingul Prakaran
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages56
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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