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________________ मग, वणं च सिहरे सयेईयं ॥ ११८ ॥ पमासजोयणेहिं, चूलाउं चनदिसासु जि | नवा ॥ सविदिसि सक्कीसाणं, चडवाविजुया य पासाया ॥ ११६ ॥ कुलगिरि चेश्दराणं, पासायाणं चिमे समठगुणा ॥ पणवीस रुंद डुगुणा, यामान इमान वावी ॥११७॥ जिाहर बदिदिसि जोय, पणसय दीह-६ पिहुल चनच्चा ॥ इस सिसमा चउरो, सियकणग सिला सवेईया ॥ ११८ ॥ सिलमाण्ड सदस्सं, | समाणसींदास दि दोहिं जुया | सिलपंडु कंबलार, कंबला पुर्वपश्चिम ॥ | ॥ ११५ ॥ जामुत्तरान तार्ज, इगेगसींदासान पुत्रं ॥ चसु वि तासु निया सण, दिसिनवजिणमजणं होई ॥१२०॥ सिहरा बत्तीसेहिं, सहसेदिं मेहलाई पंचसए ॥ पिहुलं सोमण सवणं, सिलविणु पंडगवास रिचं ॥ १२२ ॥ तब्वादि रि विकंजो, बायालस्यादि इस रिजुयाई ॥ गारसनागा, मद्ये तं चैव सदसूणं ॥ १२२॥ तत्तो सङ्घ सही, सहसेहिं नंदपि तद चैव ॥ नवरि जव Jain Educationanal For Personal and Private Use Only jainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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