________________
लघुदे०
॥ ४२ ॥
Jain Educationa
पासायं, तरह दिसि कुमरि कूडा वि ॥ १२३ ॥ नवसदस नवसयाई, चनपमा | बच्चिगारनागा य ॥ नंदणबदिविकंनो, सदसूणो होइ मद्यंमि ॥ १२४॥ तदहो पंच सर्दि, महियलि तद चेव नसालवणं ॥ नवरं मिह दिग्गयच्चिय, कूडा
विश्वरं तु इमं ॥ १२५॥ बावीससदस्साईं, मेरू पुव य पश्चिम ॥ तं चाम सीविदत्तं, वणमाणं दादिणुत्तर ॥ १२६ ॥ ब्वीस सदस चनसय, पणदत्तरि गं | तु कुरुनइपवाया | उन विनिग्गया गय, दंता मेरुम्मुदा चनरो ॥ १२१ ॥ अ ग्गेयाइसु पयादि, ऐण दिसासु सियरत पियनीला ॥ नासोमास विकुपद, | गंधमायण मालवंतरका ॥ १२८ ॥ प्रदलोगवा सिणी, दिसाकुमारीज् एए सि ॥ यदंत गिरिवराणं, दिठा चिति जवणेसु ॥ १२९ ॥ धुरि ते च पण सय, उच्च त्ति पिहुत्ति पणसया सिसमा | दीदत्ति इमे बकला, दुसयन वुत्तरस | दसतीसं ॥१३०॥ ताणं तो देवुत्तर, कुरान चंद संवियान 5वे || दससदस वि
onal
For Personal and Private Use Only
प्रकरण.
॥ ४२ ॥
www.jainelibrary.org