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________________ घुदे० ॥ ४० ॥ गहणा | समङसमा, कमुक्कमा सुवि परकं ॥ १॥ पुत्तपल्लिसमसय, | निठिए दवइ पलिये ॥ दस को डिको डिप लिए, हिं सागरो होइ कालस्स ॥ ए॥ | सागरचति कोडा, को मिमिए परतिगे नराण कमा ॥ आऊ तिऽइगपलि या, तिऽइगकोसा तच्चत्तं ॥ ३॥ तिङग दिदि तूरि, वयरामल मित्तमे सि | माहारो ॥ पिठकरंगा दोसय, बप्पन्ना तद्दलं च दलं ॥ ५४ ॥ गुणवदि तद प नर, पन्नरच्य दिया प्रवच्चपालया ॥ वि सयलजिया जुयला, सुमासरूवा | सुरगईया || || तेसि मत्तंग जिंगा, तुडियंगा जोइ दीवचित्तंगा ॥ चित्तरसा मणिगंगा, गेदागारा अयियरका ॥ २६ ॥ पाणं जायण पिचण, रविपद दीव | पद कुसुममाहारो ॥ नूसा गिद वच्चास, कप्पडमा दसविदा दिति ॥ ए ॥ मानसमगयाई, चयाइ चनरंस जाइ अहंसा | गोमहिसुखराई, पांस | सागाइ दसमंसा ॥८॥ इच्चाइ तिरछा वि, पायं संवारएस सारिचं ॥ तझ्या Jain Education national For Personal and Private Use Only प्रकरण. ॥ ४० ॥ ww.jainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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