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उपरिमाणं, सय्यरि खलु वास कोडि लरकाय ॥ उप्पलंच सहस्सा, बोधवा वा | सकोडी ॥ २८७ ॥ संमुनि पणिदि यल खयर नरग नूयगा जिन विइ कम सो ॥ वास सहस्सा चुलसी, बिसत्तरि तिपल बायाला ॥ २८८ ॥ एसा पुढवाई | णं, जव हिईसंपयंतु काय विई ॥ चन एगिंदि सु ऐया, उस प्पिणी असं खिजा, | ॥२८॥ तान वर्णमिणता, संखिका वास सहस विगलेसु ॥ पंचिंदि तिरि नरेसु, सत्त जवान डक्कोसा ॥ २९०॥ सबेसिंपि जहमा, अंतमुदुत्तं नवेय का एय । जोय सदस्स मदियं, एगिंदियदेद मुक्कोसं ॥ १०१ ॥ बिति चरिंदि सरीरं, बारस जोया तिकोस चनको संजोयण सदसपणिदिय, उदे बुळं विसेसं तु॥२॥ अंगुल असंखनागो, सुडुम निगोर्ड संख गुणबाऊ ॥ | तो अगणित आऊ, तत्तो मुदुमा नवे पुढव ॥ २३ ॥ तो बायर वान गणी, आऊ पुढवी निगोय अणुकमसो ॥ पत्तेयवणसरीरं, हियं जोयणसहस्सं तु ॥ २०४॥नस्सेदंगुल जोय
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