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बृहत्संग ण,सहस्समाणे जलासए नेय।तं वल्लि पम पमुहं,अपरंपुढविरूवंतु॥vvm/N|| प्ररकण.
बारस जोयण संखो, तिकोस गुम्मीय जोयणं नमरो॥ मुबिम चम्पयनुय गुर लग, गाळधणु जोयण पहुत्तं ॥५६॥गन चनप्पय बग्गा, उयाइं जुयगान गान
य पहुत्तं ॥ जोयण सहस्स मुरगा, मला उन्नय विय सहस्सं ॥२॥परिक । ग धणुपत्तं, सवाणंगुल असंखन्नाग लहू ॥ विरहो विगला सन्नी, ण जम्म म रणे सुअंत मुहू ॥शनागने मुहृत्त बारस,गुरु लह समय संखसुर तुला ॥ अणुसमय मसंखिका, एगिदियहुँतिय चवंति॥शणणावणकाजे अणंता, शकि का विजं निगोयानिच्चमसंखो नागो, अणंतजीवो चयइ ए॥३०॥ गोलाय असंखिजा, असंख निग्गोय हव गोलो ॥ इक्किकंमि निगोए, अ लाएंत जीवा मुणेयवा ॥३०॥ अनि अणंता जीवा, जेहिं न पत्तो तसा परिणा
मो॥नप्पङति चयंति य, पुणोवि तव तव्व॥३०शासवोवि किसलउँ खलु,
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