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________________ | सयं, इगसमए जंति ते सिद्धिं ॥ २७२ ॥ वीस चि दस नपुंसग, पुरिसठसयं तु एग समए । सिझइ गिहिन्न सलिं, ग चउदस ठाहिय सयं च ॥ २७२ गुरु बहु मशिम दोचन, सयं उदो तिरिय लोए ॥ चन बावीस सयं, | इस मुद्दे तिन्नि सेसजले ॥ २७३ ॥ नरय तिरिया गयादस, नरदेवगईन वीस इसयं ॥ दुसरया सक्कर वा, लुयान चन पंक नू दगर्ज || २७४ || बच्च वणस्सइ दस तिरि तिरिब दस मणुय वीस नारी ॥ सुराइ वंतरा दस, पण तद्देवी न पत्तेयं ॥ २७५॥ जोइ दस देविवीस, विमाणियठसय बीसदेवी ॥ तद पुढे एहिंतो, पुरिसो होऊण असयं ॥ १७६ ॥ सेस नंगएसु, दसदस सिति एग समए ॥ विरहो मास गुरुर्ज, लहु समर्ज चवणमिह न ||२|| स ग व पंच चनं ति न्निन्नि इक्कोय सिकमाणेसु ॥ बत्तीसाइसुसमया, निरंतरं अंतरं जवरिं ॥२७८॥ बत्तीसा अडयाला, सठी बावत्तरीय बोधवा ॥ चुलसीई Jain Educationa H For Personal and Private Use Only wjainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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