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________________ बृहत्सं० ॥ २ए ॥ Jain Educationa | देवा ॥ चज विह सुर चक्किबला, वेमाणिय हुंति हरि रिहा ॥ २६३ ॥ दरिणो माणुस्स रयणा, इ हुंति नागुत्तरेहिं देवेहिं ॥ जद संभव मुववार्ड, दयगय एगिं | दि रयणा ॥ २६४ ॥ वामपमाणं चक्कं, बत्तं दमं डुवयं चम्मं ॥ बत्तीसंगुल ख ग्गो, सुवास का गिणि चजरंगुलिया ॥ २६५ ॥ चनरंगुलो अंगुल, पिहुलोय म |ी पुरोदि गय तुरया ॥ सेणावर गादावर, वढ्ढइ थी चक्कि रयणाई ॥ २६६ ॥ चनरो प्रायुज गेहे, जंगारे तिन्निन्नि वेवढे ॥ एगं रायगिहम्मिय, नियनयरे चैव चत्तारि ॥ २६७ ॥नो सप्पे पंडूए, पिंगलए सवरयण महपनमे ॥ कालेय म हाकाले, माणव गया महासंखे ॥ २६८ ॥ जंबुद्दीवे चउरो, सयाइ वीसुत्तराइ न कोसं ॥ रयणाइ जहां पुण, हुंति विदेदमि बप्पा ॥२६॥ चक्कं धणुदं खग्गो, मणी गया तहय होइ वणमाला ॥ संखो सत्तइमाई, रयणाई वासुदेवस्स ॥ | ॥२७०॥ संखनरा चनसुगर, सु जंति पंचसु वि पढम संघयणे । इग इति जा ग्रह For Personal and Private Use Only प्रकरण• ॥ २५ ॥ ainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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