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प्रकरण.
बृहत्संगण वीसं ॥२४॥ पणधणु अंगुलवीसं, पणरसधणु दूणिदब सट्टाय ॥ बासहि
धणुदसट्टा, पण पुढवी पयर वुटिश्मा॥४॥श्य साहाविय देहो, उत्तर वेन ॥२ ॥
|वि य तहुगुणो॥उविहो वि जहम कमा,अंगुल असंख संखंसो॥४॥ स [त्तसु चनवीस मुहू, सग पनरदिणेग उचन बम्मासा ॥ नववाय चवणविरहो, उदे बारस मुहुत्त गुरू ॥श्य लहु उहावि समर्ड, संखा पुण सुरसमा मुणेय
वा॥ संखान पजत्त पणिं,दि तिरि नरा जंति निरएसु ॥२५॥ मिबादिहि महा नारं, न परिगहो तिव्वकोद निस्सीलो॥ नरयाजयं निबंध, पावमई रुद्दपरिणामो almsu॥ असन्निसरिसिव परकी, ससीद नरगिं नि जंति जा हिं॥ कमसो न
कोसेणं, सत्तम पुढवी मणुय मना ॥२५३॥ वाला दाढी परकी, जलयर नरया ||गया न अश्कूरा ॥ जंतिपुणो नरएसु,बाहल्लेणं न जण नियमो॥२५॥दो पढ म पुढवि गमणं, देव कीलियाई संघयणे ॥शक्किक्क पुढविवुट्टी, आइतिखेसा ।
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