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________________ प्ररकण. बृहत्सं० नटुं जवण वणाणं, बहुगोवेमाणियाण होउँदो ॥ नारय जोइस तिरिय, नर ति ॥ रियाणं अणेगविदो ॥५०॥ श्यदेवाणं नणियं, विशपमुहं नारयाणवुनामि॥ गतिन्नि सतदससतर, अयर बावीस तित्तीसा॥२०॥सत्तसु पुढवीसुविई, जि. होवरिमा दिपुहवीए॥दोश्कमेणकणिछा, दसवास सहस्स पढमाए॥२०॥ नव सम सहस लरका, पुवाणं कोडि अयरदस नागा ॥ इकिक नाग वुट्ठी, जा अयरं तेरसे पयरे ॥२०३॥श्य जिह जहमा पुण, दसवास सहस्स लक प. || यर उगे॥सेसेसु जवरि जिछा, अहो कणिहान परं पुढवी ॥२०॥ नवरि खि विश विसेसो, सगपयर विदत्तु श्वसंगुणि ॥नवरिम खिश वि सदि, छिय पयरम्मि जक्कोसा ॥२०॥ सत्तसु खित्तज वेयणा, अन्नन्न कयावि पहरणे हिं विणा ॥ पहरण कया वि पंचसु, तिसु परमादम्मिय कयाविं ॥३०६॥ बंधण गइ संगणा, नेया वरमा य गंध रस फासा ॥ अगुरु लहु सद्द दसहा, असुहा ॥२५॥ Jain Education international For Personal and Private Use Only M.jainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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