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प्रकरण.
बृहत्संग यवो॥२७॥याहारासबे, अपजत्त पजत्तलोमआहारो॥सुरनिरय इगिदिवि । MAINणा, सेसनवा सपकेवा ॥१४॥सच्चित्ता चित्तोन्नय, रूवो आहारसव तिरि
आणं॥सवनराणं च तदा, सुरनेरझ्याण अञ्चित्तो॥१५॥ आन्नोगाणा नो गा, सवेसिं दो लोम आदारो ॥ निरयाणं अमणुन्नो, परिणम सुराण समणु
मो॥१७॥तह विगल नारयाणं, अंतमुहुत्ता सहोइ नक्कोसो ॥ पंचिंदि तिरि INनराणं, सादाविन ह अहम ॥ १७ ॥विग्गदगइ मावन्ना, केवलिणो समु
दया अजोगी य॥सिधा य अणादारा, सेसा आहारगा जीवा ॥ १७ ॥ केस मिंस नद रो,मरुदिर वसचम्म मुत्त पुरिसेहिं ॥ रहिया निम्मल देहा, सुगं ।
ध निस्सास गय लेवा ॥रना अंतमुहुत्तेणं चिय, पजत्ता तरुण पुरिस संका INसा ॥ सवंगनूषणधरा, अजरानिरुया समा देवा ॥ २०॥ अणि मिस नयणा || ॥२४॥
मणक,ऊ साहणा पुप्फदाम अमिलाणा ॥ चनरंगुलेण नूमि, न बिंति सुरा
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