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________________ |सार पाणय, प्रच्य देवाण पणपन्ना ॥ १७२॥ किएहा नीला काऊ, तेक पम्हा य सुकलेसा ॥ जवण वण पढम चडले, सजोइस कप्पडुगे ते ॥ १७६ ॥ क प्पतिय पम्हलेसा, संताइसु सुक्कलेस हुंति सुरा || कणगान पनमकेसर, वस्मा | डुसु तिसुनवरि धवला ॥ १७७॥ दसवास सदस्साई, जहन्नमानं धरंति जे देवा ॥ तेसिं चन्या दारो, सत्तदि योवेदि ऊसासो ॥ १७८ ॥ यदि वादि विमुक्कस्स, | नीसासूसास एगगो ॥ पाणू सत्तइमो थोवो, सोवि सत्तगुणो लवो ॥१७॥ ल वसत्तत्तरी ए, होइ मुदुत्तो इमम्मि ऊसासा ॥ सग तीस सय तिदुत्तर, तीसगुणा ते होरते ॥ १८० ॥ लकं तेरस सहसा, नन्यसयं यरसंखयादेवे ॥ परके हिं ऊसासे, वास सदस्सेदिं आहारो ॥ १८२ ॥ दसवास सदस्सु वरिं, ई जाव सागरं ऊणं दिवसमुहुत्त पहुत्ता, आहारूसास से साणं ॥ १८२॥ सरिरेणो जयादारो, तयाइफासेण लोमाहारो ॥ परकेवादारोपुण, कावलि होइ ना समया Jain Educationantematonal For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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