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________________ बृहत्सं० ॥ २३ ॥ Jain Educationa प्रणय पमुदा चविनं, मणुए सुचैव गचं ति ॥ १६७ ॥ दोकप्प कायसेवी, दो दो | दो फरिस रूवसदेदिं ॥ चउरो मणेणु वरिमा, अप्पवियारा प्रांतसुदा ॥ १६८ । जं च कामसुदं लोए, जं च दिव्वं महासुदं ॥ वीयराय सुदस्सेय, पंतनागं पि नग्घई ॥१६५॥ नववार्ड देवी, कप्पडगं जा परो सदस्सारा ॥ गमणागमणं न ची, अन्य परर्ज सुराणंपि ॥ १७० ॥ तिपलिय तिसार तेरस, साराकप्प डुग त इय संत हो ॥ किब्बिसिय नहु॑ति नवरिं, अन्य पर निर्जगाई ॥ १७२ ॥ अ परिग्गद देवी, विमाण लरका व हुंति सोहम्मे ॥ पलियाई समया हिय, वि | इजासिं जाव दसपलिया ॥ १७२ ॥ ता सां कुमारा, ऐवं वद्धंति पलिय दस | गेहिं ॥ जा वंज सुक्क प्रणय, आरण देवाण पन्नासा ॥१७३॥ ईसाणे चडलका, साहिय पलियाइ समय हियविई ॥ जा पनर पलिय जासिं, तार्ज माहिंददे वाणं ॥ १७४॥ एए कमेण नवे, समयाहिय पलिय दसग वुट्टीए ॥ संत सह For Personal and Private Use Only प्रकरण. ॥ २३ ॥ jainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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