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________________ ॥११॥ऽसु तिसु तिसु कप्पेसु, घणुदहि घणवाय तनयं च कमा ॥ सुरन । वणपश्हाणं, आगास पशघ्या जवरि ॥११३॥ सत्तावीस सया, पुढवीपिं ।। मो विमाण उच्चत्तं ॥ पंचसया कप्पज्ज्गे, पढमे तत्तोय शक्तिकं ॥ ११४॥ दाय पुढवीसु सयं, वमृइ जवणेसु उउउ कप्पेसु॥ चनगे नवगे पणगे, तदेव जाणु । त्तरेसु नवे ॥११५॥गवीस सया पुढवी, विमाण मिकारसेवय सया॥ब त्तीस जोयणसया, मिलिया सबब नायबा ॥ ११६ ॥ पण चन ति वाम वि मा, ण सधय उसु उसुय जा सहस्सारो॥नवरि सिय नवण वंतर, जोसि । याणं विविहवामा ॥ ११॥ रविणो उदयवंतर, चनणवइसहस पणसय | वीसा ॥ बायाल सहिनागा, कक्कड संकति दियहमि ॥१२॥ एयंमि पुणो गुणिए, तिपंच सग नवहि होइ कममाणं ॥ तिगुणमि य दोलका, तेसी स हस्स पंचसया ॥ ११॥ असिई सहिन्नागा, जोयण चनलक बिसतरि Jain Educati o nal For Personal and Private Use Only .allw.jainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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