________________
बृहत्स०
॥ १९ ॥
Jain Educational
| पश्चिमेण य, सामसा आवली मुणेयवा ॥ जेपुण वह विमाणा, मघिल्ला दा | दिवाणं ॥ १०५ ॥ पागारपरिरिकत्ता, वह विमाणा दवंति सवेवि ॥ चनरंस विमाणा, चनद्दिसिं वेश्या होइ ॥ १०६ ॥ जत्तो वट्टविमाणा, तत्तो तंसस्स वेश्या होइ ॥ पागारो बोधवो, अवसेसेरिंतु पासेसु ॥ १०७ ॥ पढमं तिम पयरा वलि, विमाण मुदभूमि तस्स मास ई ॥ पयरगुण मिठकप्पे, सवग्गं पुप्फकि | मयरे ॥ १०८ ॥ इदिसि पंति विमाणा, तिविजत्ता तंस चंजरसा वहा ॥ तंसे सुसेसमेगं, खिव सेस डुगस्स इक्किकं ॥ १०९ ॥ तंसेसु चनरंसेसु य, तो रासि तिगंपि चगुणं कां ॥ वट्टेसु इंदयं खिव, पयरधणं मीलियं कप्पे ॥ ११० ॥ कप्पेसुय मिय महिसो, वराद सीदाय बंगल सालूरा ॥ हय गय जुयंग खग्गी, | वसदा विकिमाई चिंधाई ॥ १११ ॥ चुलसी सिइ बावत्तरि, सत्तरि सही य पन्न चत्ताला ॥ तुलसुर तीस वीसा, दस सदस्सा आयरक चउगुणिया ॥
hat
For Personal and Private Use Only
प्रकरण.
॥ १५ ॥
jainelibrary.org