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________________ MAnाचन सत्तअनवग,गारसकूमेहिं गुणद जदसंखं॥सोलस उगुणया लं,ज्वेयसगसहि सयचनरो॥१६॥चउतीसं विजएसु, उसहकूमा अमेरुजंबु माअध्य देवकुराइं, दरिकूम दरिस्सएसह॥रामागद वरदाम पना,सं तिब। विजयेसु एरवय नरदे॥चतीसा तिहिं गुणिया, उरुत्तरसयं तु तिवाणं॥१॥ विजादर अनिगिय, सेढी उन्नि उन्नि वेअद्वे ॥श्य चनगुण चनतीसा, न तीस सयं तु सेढीणं ॥१५॥ चक्की जेयत्वाइ, विजयाइंश्च हुँति चनतीसा॥म लाह दह बप्पनमाई, कुरूसु दसगंति सोलसगं ॥ २०॥ गंगा सिंधू रत्ता, रत्त ॥ वई चन नईन पत्तेयं ॥ चन्दसहिं सहसेटिं, समग्ग वच्चंति जलदिमि ॥२१॥ एवं अग्निंतरिया, चनरो पुण अहवीस सहसेटिं। पुणरवि उप्पन्नेहिं, सहसे । हिं जंति चन सलिला ॥२२॥कुरुमद्ये चनरासी, सहसाइं तहय विजय सो लससु ॥ बत्तीसाण नईणं, चउदस सहसाई पत्तेयं ॥ १३॥ चनदस सद Jain Educationa l For Personal and Private Use Only Mainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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