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अप्पहिआ॥४२॥ इतिश्री दंडकप्रकरणं संपूर्णम् ॥ ७ ॥ ७ ॥ ॥ अथ श्रीलघुसंघयणी प्रारभ्यते ॥ नमिय जिणं सवन्नु, जगपुऊं जगगुरूं महावीरं ॥ जंबुद्दीव पयजे, वुद्धं सुत्ता सपरदेऊ ॥ १ ॥संमा जोयण वासा, पवय कूडा य तिब सेढी ॥ विजय दह सलिलार्ड, पिंमेसि होइ संघयणी ॥२॥णय सयं खंमाणं, नरहपमाणेण नाइए लके॥ अहवा नअसय । गुणं, नरद पमाणं दव लकं ॥ ३ ॥ अहविग खंडे नरहे, दो दिमवंते अ हेमवश् चनरो॥अह महाहिमवंते, सोलस खंडाइ दरिवासे ॥४॥ बत्तीसं पुण निसढे, मिलिया तेसहि बीयपासे वि ॥ चनसहि विदेहे, तिरासि पिंमेशक
असयं ॥५॥जोयण परिमाणाइं. सम चनरंसाइंश्च खंमाइं॥लकस्स Nय परिहीए, तप्पाय गुणेय हंतेव ॥६॥विकंन वग्ग दहगुण, करणी वहस्स।
परिर होइ॥ विस्कंन पाय गुणिजे, परिर तस्स गणियपयं ॥ ७॥ परिही
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