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________________ करावे, ते निश्चे तीर्थंकर थाय // 11 // ॥जे पोतानी शक्तिमाफक मात्र एक अं गुष्ठ प्रमाणे परमेश्वरनी प्रतिमा करावे, ते मोक्षपद प्रत्त्यें पामे // 12 // // धर्मरूप / वृदनुं मूल ते नळु शास्त्र , तथा प्रत्यद मोद फलनुं दातार , एम जाणतो जे पु पाषाणरत्नलेपमयीमपि // कारयत्यर्हतां मूर्ति, स वै तीर्थकरो नवेत् // 11 // al अंगुष्ठमात्रामपि यः, प्रतिमा परमेष्टिनः॥ कारयेशा यथाशक्ति, सलनेत्पदमव्य यम् // 1 // धर्मजुमूलं स्याबास्त्रं, जानन मोदफलप्रदम् // लेखयेशाचयेद्यस्तु, शृणुयानावशुक्ष्कृित् // 13 // लेखयित्वा च शास्त्राणि, यो गुणिन्यः प्रयति॥ तन्मात्रादरसंख्यानि, वर्षाणि त्रिदशो नवेत् // 14 // ज्ञानन्नक्तिं विधत्ते यो, IN रूष शास्त्रने लखावे, वांचे, सांजले तेनी ते शास्त्रश्री नावशुद्धि थाय // 13 // ॥जे म. Malनुष्य सिद्धांतशास्त्र लखावीने गुणवंत पंडितने श्रापे ते मनुष्य, शास्त्रना जेटला अक्षर | होय तेटला अदर प्रमाण वरस देवता थश्ने रहे // 14 // ॥जे झाननी जक्तिप्रत्ये / / Jain Educational For Personal and Private Use Only nelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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