________________ ए चार प्रकारनो धर्म थाराधे // 3 // // थोमामांथी थोडं श्रापीयें, महोटा उदयनी अपेक्षा न करवी; केमके, मननी इला सरखी संपदा केवारे कोश्ने होती नथी // 4 // ld प्राणी ते ज्ञानने दानेकरी ज्ञानवंत थाय, अजयदान देवाथी जयरहित थाय, अ फलप्रदम् // 3 // देयं स्तोकादपि स्तोकं, न चापेदयो महोदयः // श्वानुरूपो al विनवः, कदा कस्य नष्यिति ॥४॥झानवान् शानदानेन, निर्नयोऽनयदानं / तः // अन्नदानात् सुखी नित्यं, निर्व्याधिर्नेषजानवेत् // 5 // कीर्तिः संजायते // पुण्यात्, न दानादथ कीर्तये // कैश्चिरितीर्यते दानं, झेयं तद्यसनं बुधैः // 6 // व्याजैः स्याद्विगुणं वित्तं, व्यवसायैश्चतुर्गुणम् // देत्रे शतगुणं प्रोक्तं, पात्रेऽनंत / नना दानश्री सदा सुखी थाय, अने औषधिनुं दान देवाथी रोगरहित थाय // 5 // पुण्य थकी कीर्ति पामीयें,एकली मात्र कीर्तिने अर्थ केटलाएक दान थापे ,ते दान पंडि तोएं व्यसन जाणवू // 6 // // जे व्याजें धन थापीयें, ते बमणुं थाय, व्यापारें चो Jain Educationairat For Personal and Private Use Only Allainelibrary.org