________________ // 115 // आज शाश्वत एवां मोदनां सुख पामे // 34 // इत्याचारोपदेशे पंचमवर्गः समाप्तः // 5 // श्रावक रूडी धर्मनी करणी प्रत्ये करतो सम्यक्त्व निवृति पामी रहे, अतृप्त मने करी धर्मनी करणी प्रत्ये नित्य करे // 1 // // धर्मथी उकुरा पामी, जे प्राणी धर्म न करे, तशुबुदिर्जुक्तिं सुपर्वसुखमेति च मुक्तिसौख्यम् // 34 // इति श्रीआचारोप, देशे पंचमवर्गः // 5 // अथ षष्ठवर्गप्रारंन्नः॥ श्राशे विधाय सर्म, कर्मतो नित्तिं व्रजेत् // अतृप्तमानसः कुर्याधर्मकर्माणि नित्यशः ॥१॥धर्मादधि गतैश्चर्यो, धर्ममेव निदन्ति यः // कथं शुन्नायतियात्, स स्वामिशेदपातकी Adm2 // दानशीलतपोनाव,नेदैर्धर्म चतुर्विधम् // शुचिधीराराधयेद्यो, जुक्तिमुक्ति एवा पोताना स्वामित्रोही पापीनुं श्रागल नबुं केम थाय ? // 2 // ॥रूडी बुझिनो धणी जे होय ते निरंतर जुक्ति अने मुक्तिना फलनो देवावालोएवो दान, शील, तप अने जाव // 12 // Jain Educational For Personal and Private Use Only NYHainelibrary.org