________________ स्वामी प्रत्ये दीवालीना दिवसे स्मरण करे, ते निश्चयथी इहलोकें श्रने परलोकें मोहोटो उदय पामे // 31 // // पोताना घरने देरासरे अथवा गामने देरासरें विधियें करी जग वंतने पूजीने मंगलदीवा प्रत्ये करीने पोताना बंधव साथें नोजन प्रत्ये करे // 3 // श्रीनगवंतना कल्याणकना महोटा पांच दिवसने विषे पोतानी शक्ति माफक यथायो मुत्र महोदयात् // 31 // स्वगृहे. ग्रामचैत्ये च, विधिनार्चा जिनेशितुः॥ कृत्वा / मङ्गलदीपं चाश्नीयात्साई स्वबंधुनिः॥३॥ कल्याणके जिनानां दि, परमे दिन पंचके // निजशक्त्या सदर्थिन्यो, दद्यादानं यथोचितम् // 33 ॥श्वं सुपर्ववि हितोत्तमकृत्यचार्वाचारप्रचारपिहिताश्रववर्गमार्गः // श्रा-६ः समृविधिवधि ग्य सद्याचकने दान प्रत्ये श्रापे // 33 // // एम रूडा पर्वना समयें करवा योग्य कृत्य लारूप जला श्राचारने पालवे करी ढाक्यो बेथाश्रवना वर्गनो मार्ग जेणे, समृफ जे विधि तेणें करी वृद्धि पामी ले नली बुद्धि जेनी एवो श्रावक ते देवताना सुख प्रत्ये जोगवीने || For Personal and Private Use Only Sw.jainelibrary.org