________________ स्नान प्रमुख श्रारंज न करे // 53 // ॥महोटुं पर्व पर्युषण बे, तेने विषे शुझमने करी] ने जिनशासननी शोलामाटे उत्सव करतोनगरमांजीवदयापलावतो कल्पसूत्र सांजलेश्व ते श्रावक नला धर्मनी करणी प्रत्ये करीने पण संतोष पामी रहे नही. मनेंकरी तृप्तिश्र हे, खंडनापेषणादिकान ॥२३॥पर्वणि शृणुयाज्ज्येष्ठे, श्रीकल्पं स्वबमानसः॥ शासनोत्सर्पणं कुर्वन्न मारी कारयेत्पुरे॥२४॥श्राछो विधाय स्वं धर्म, नो त प्तिं तावता ब्रजेत् // अतृप्तमानसः कुर्या धर्मकर्माणि नित्यशः ॥२५॥ष / पर्वणि श्रीकल्पं, सावधानः शृणोति यः॥ अंतर्नवाष्टकं धन्यं, लनेतपरमं प दम् // 26 // सम्यक्त्तसेवनान्नित्यं, सब्रह्मव्रतपालनात् // यत्पुण्यं जायते लो ण पामतो धर्मनी करणी प्रत्ये सदा सर्वदा करे // 25 // // पर्युषण पर्वनें विषे श्री कल्पसूत्र सावधान थश्ने श्रावक सांजले, ते धन्य पुरुष पाउनव मांहे मोद पामे॥२६॥ नित्ये समकितनी सेवाथी तथा नित्ये रूडुं ब्रह्मचर्य व्रत पालवाथी लोकने विषे जे पुण्य | Jain Educational For Personal and Private Use Only Mainelibrary.org