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________________ दस सहस वरिस विश्ा, नवणादिव निरयवंतरिया ॥२॥वेमाणिय जो सिआ, पल्लत यह साना हुंति ॥ सुर नर तिरि निरएसु, ब पऊत्ति थावरे चनगं॥ ॥ विगले पंच पजत्ति, दिसि आहार होइ सवसि ॥ पण गाइ पए जयणा, अह समितियं नणिस्सामि॥॥ चनविद सुर तिरिएसु, निरएसु अ दोहकालिगी सम्मा ॥ विगले देउवएसा, सन्नारहिया थिरा सवे । ॥३०॥ मणुआण दीद कालिञ, दिहीवाउँवएसिआ केवि ॥पज पण तिरि | मणुअ चिय, चनविद देवेसु गति ॥ ३१ ॥ संखान पङ पणिंदि, तिरिय नरेसू तहेव पऊत्ते ॥ नू दग पत्तेयवणे, एएसु च्चिय सुरागमणं ॥३२॥ पज त्त संख गन्नय, तिरिय नरा निरय सत्तगे जंति ॥ निरजवटा एएसु, नववडांति न सेसेसु ॥ ३३ ॥ पुढवी आज वणस्सइ, मख्ने नारय विवजि जीवा॥स वे उववति, निय निय कम्माणुमाणेणं ॥ ३४ ॥ पुढवाइ दस पएसु, पु Jain Education Bonal For Personal and Private Use Only RYu.jainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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