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________________ inco ॥ ए॥ | ॥ १॥ अन्ना ना तिय तिय, सुर तिरि निरए थिरे ना ग ॥ नान्ना एडु विगले, मणुए पण ना तिच् नाणा ॥ २० ॥ इक्कारस सुर निरए, तिरि एसु तेर पनर मणुसु ॥ विगले चन पण वाए, जोगतियं थावरे होई ॥ २१ ॥ नवगा मणुए सु, बारस नव निरय तिरिय देवेसु ॥ विगलडगे पण बक्कं, चन रिं दिसु थावरे तियगं ॥ २२॥ संख मसंखा समए, गज्जय तिरि विगल नारय सु राय ॥ मणुच्या नियमा संखा, वण ांता यावर असंखा ॥ २३ ॥ सन्नि नर प्रसंखा, जद नववा तदेव चवणेवि ॥ बावीस सग ति दस वा, स सदस उ क्विक पुढवाई ॥ २४ ॥ तिदिए ग्गि ति पल्लाऊ, नर तिरि सुर निरय सागर ति तीसा ॥ वंतर पल्लं जोइस, वरिस लकादिच्यं पलियं ॥ २५॥ सुरा दिय प्रयरं, देसूण 5 पल्लयं नवनिकाए ॥ बारस वासुणु पण दिए, बम्मासु | कि विगला ॥२६॥ पुढवाइ दस पयाणं, अंत मुहुत्तं जन्न आई || Jain Educationaonal For Personal and Private Use Only प्रकरण. ॥ ए ॥ jainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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