________________ नमोअरिहंतादिक वीश पद ते वीश थानक तेनेजे विधि सहित एकासण प्रमुख तपें करीने alकरे,ते पुरुष धन्य जाणवो // 16 // ॥ते विधि श्रने ध्यानसहित जे ए वीशस्थानक था राधे, ते प्राणी फुःखनो हरनार एवं महोटं तीर्थंकर पदवीनुं नाम कर्म पामे // 17 // त्सरैः पूर्यात्, तेषु चोपोषिते सुधी॥१५॥ अदादिपदस्थानि, विंशतिः स्थान कानि च ॥प्रकुर्वीत विधिं धन्य, स्तपसैकाशनादिना // 16 // ततो विधिध्या नपरो, योऽमून्याराधयत्यहो // खन्नते तीर्थकृन्नामकर्माशर्महरं परम् // 17 // उपवासेन यः शुक्ला, माराधयति पञ्चमीम् // सार्धानि पञ्च वर्षाणि, लन्नते पंचमी गतिम् // 17 // उद्यापनं व्रते पूर्णे, कुर्यामा विगुणं व्रतम् // तपोदिन / साडा पांच वरस लगें उपवासें करीने जे उजवाली पांचम प्रत्ये श्राराधे ते पांचमी गति Kामोद प्रत्ये पामे // 17 // ॥व्रत पूरण थया पली उजमणुं करे, जो शक्ति न होय तो वमणुं तप करे, तपना दिवस प्रमाणे माणसोने जमाडे // 1 // // // // Jain Education For Personal and Private Use Only jainelibrary.org