________________ थान गरुड समान, सर्व सिजिना श्रापनार एवा श्रीशांतिनाथ प्रत्ये मनमां ध्यातो थको |मनुष्य चोर प्रमुखथी जय न पामे // 27 // ॥ए प्रकारे ए सर्व दिवस संबंधि करणी " " जाणीने श्रावकवर्गने कीधो डे उत्तम संतोष जेणे एवी करणी जे आदरे, ते पुरुष सर्वसिद्धिकरं परम् // ध्यायन् शांतिजिनं नैति, चौरादिन्यो नयं नरः // 27 // श्त्यवेत्य दिनकृत्यमशेष, श्राध्वर्गजनितोत्तमतोषम् // संचरन्निद परत्र च लो के, कीर्तिमेति पुरुषो धुतदोषः ॥श्न॥इति श्रीआचारोपदेशे चतुर्थवर्गः // 4 // M // अथ पंचमवर्गप्रारंनः // लब्ध्वा तन्मानुषं जन्म, सारं सर्वेषु जन्मसु // सुकृतेन सदा कुर्यात्, सकलं सफलं सुधीः // 1 // निरन्तरकृता धर्मात्, सुखं नि| सर्व दोष टालीने इहलोक अने परलोकें जस पामे // // इति श्रीश्राचारोपदेशे चतु। र्थवर्गः समाप्तः // 4 // सघला जन्मनो सार एवो ए मनुष्यनो जन्म पामीने ते पुरुष पुण्येंकरीने सदा सर्वदा सर्व कामनी सिद्धि करे // 1 // // निरंतर धर्म कस्याथी // 10 // Jain Education For Personal and Povate Use Only Liainelibrary.org