SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ते श्रझा श्राव्या पली रूडा गुरुनो योग जो मोहोर्से जाग्य होय तो पामीयें ॥११॥ Kाए सर्व वस्तु पामी, पण जेम राजा न्यायें करी शोने, फूल सुगंधे करी शोने, नोज | न घृतेंकरी शोने, तेम जला श्राचारें करी शोज एवी सामग्री पामवी उर्लन डे ॥१५॥ , अशा नवति उर्खन्ना ॥ ततः सजुरुसंयोगो, लन्यते गुरुनाग्यतः ॥ ११॥ पलब्धं हि सर्वमप्येतत्सदाचारेण शोनते ॥ न्यायेनेव नृपः पुष्पं, गन्धेना । ज्येन नोजनम् ॥ १॥ शास्त्रे दृष्टेन विधिना, सदाचारपरो नरः ॥ परस्परा विरोधेन, त्रिवर्ग साधयेन्मुदा॥ १३॥ तुर्ये यामे त्रियामाया, ब्राह्मे काले कृ तोद्यमः॥ मुञ्चे निशं सुधी पञ्च, परमेष्ठिस्तुतिं पठन्॥२४॥ ॥ ॥ ॥ | माटे जेवो विधि शास्त्रमा दीगो, तेवा विधियेकरी जे सदाचारमा तत्पर रहे, ते प्राणी || N|| मांहोमांहे विरोध विना त्रिवर्ग, हर्षे करी साधे ॥ १३ ॥ ॥ जे पंडित बे,ते रात्रिने || चोथे पोहोरे ब्राह्मकाले एटले बे घडी पाठली रात्रे उठवानो उद्यम करीने नवकारनी For Personal and Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy