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________________ अ०ज० ॥ ८२ ॥ | स्तुति जगतो थको निद्रानो त्याग करे ॥ १४ ॥ ॥ सदा सर्वदा शय्याथी उठतां डाबी | श्रथवा जमणी, जे नासिका वदेती होय, ते तरफनो पग उठती वखत प्रथम धरती उपर | आपे ॥ १५ ॥ ॥ पठी रात्रें सूतानां वस्त्र मूकीनें बीजां वस्त्र पढेरीने जला स्थानकें बेसीनें वामा तु दक्षिणा वापि, या नाडी वढ्ते सदा ॥ शय्योतिस्तमेवादौ पादं द द्यानुवस्तले ॥१५॥ मुक्त्वा शयनवस्त्राणि, परिधायापराणिच ॥ स्थित्वा सुस्था नके धीमान, ध्यायेत्पञ्चनमस्क्रियाम् ॥१३॥ उपविश्य च पूर्वाशाभिमुखो वाप्यु दङ्मुखः ॥ पवित्राङ्गः शुचिस्थाने, जपेन्मन्त्रं समादितः ॥ १७ ॥ अपवित्रः प वित्रो वा सुस्थितो दुःस्थितोऽपि वा ॥ ध्यायेत्पञ्चनमस्कारानू, सर्वपापैः प्र बुद्धिवंत जीव प्रथम नवकारनुं ध्यान करे ॥ १६ ॥ ॥ ते पूर्वदिशि सन्मुख अथवा उत्तर दिशि सन्मुख, पवित्र शरीरें पवित्र स्थानकें बेसी मन स्थिर राखीने श्रीनवकार मंत्रनो | जाप करे ॥ १७ ॥ ॥ अपवित्र अथवा पवित्रपणें सुखियो अथवा दुःखियो थको Jain Educationa international For Personal and Private Use Only वर्ग १ ॥ ८‍ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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