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________________ कर्म ० ॥ ७३ ॥ वीसे चन इग, वीसे सत्तरस तेरसे दोदो || नव बंधगे वि पुणिर्ड, इक्क्कि प्र परं गंगा || १६|| दस बावीसे नव इग, वीसे सत्ताइ उदय कम्मंसा ॥ गइ नव सत्तरसे, तेरं पंचाइ अठेव ॥ १७ ॥ चत्तारि आइ नव बंध, एसु नक्कोस स त मुदयंसा ॥ पंच विद बंधगे पुण, उदयो दुहं मुणेवो ॥ १८ ॥ इत्तो चन बं धाइ, इक्किकुदया दवंति सबै वि ॥ बंधो चरमे वि तहा, उदया जावे विवाहुका ॥१॥ इक्कग बक्किक्कारस, दस सत्त चक्क इक्कगं चेव ॥ एए चडवीस गया, बा र गिक्कम्मि इक्कारा ॥२०॥ नव तेसीइ सएहिं, उदय विगप्पेदि मोहिया जी वा ॥ अनुत्तरि सीच्याला, पयविंद सपदि विन्नेा ॥ २२ ॥ नव पंचाण उस ए, उदय विगप्पेदि मोहिया जीवा ॥ अनुत्तरि एगुत्तरि, पय विंद सहि वि नेा ॥ २२॥ तिन्नेवय बावीसे, इगवीसे वीस सत्तरसे ॥ बच्चैव तेर नव बं, धरसु पंचैव वाणाणि ॥ २३॥ पंचविद चनविदेसु, ब बक्क सेसेसु जाण पंचेव Jain Educationandional For Personal and Private Use Only ग्रंथ ६ ॥ १३ ॥ Dr.jainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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