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सिक्षा, पंतंसो अंतरेसु अग्गहणा ॥ सबब जहन्नुचिया, नियणंतं साहिआ ! जिहा ॥७॥ अंतिम चन फास उगं,ध पंचवन्नरस कम्म खंध दलं ॥ सव्व जि यणंत गुण रस, अणुजुत्त मणंतय पएसं॥॥ एग पएसा गाढं, नि सब पएस गहेश जि ॥ थोवो आज तदंसो, नामे गोए समो अदि ॥ वि ग्यावरणे मोदे, सबोवरि वेणी जेणप्पे ॥ तस्स फुमतं न दवइ, हिई विसे । सेण सेसाणं ॥॥निअ जाइ लक्ष दलि, तंसो होई सव्व घाईणं ॥ बसं तीण विनाइ, सेसं सेसाण पइ समयं ॥१॥सम्मदेस सब विरइ, नअणं विसंजोअ दंस खवगेअ॥मोह सम संत खवगे, खीण सजोगि अर गुण से , ढीश गुणसेढी दल रयणा, णुसमयमुदया दसंख गुणणाए ॥ एअगुणा पुण कमसो, असंख गुण निजरा जीवा ॥७३॥ पलिआ संखंसमुहू, सासण अर गुण अंतरंहस्सं ॥ गुरु मिबि वे बसही,श्यरगुणे पुग्गल इंतो॥४॥
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