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________________ कर्म० ७० ॥ कसाय विरय, देस पमत्तो र सोए ॥ ६॥ अपमाइ दारग डुगं, निद्द असु | वन्न दासरइ कुच्छा ॥ जय सुवधाय मपुवो, अनियहि पुरिस संजलणे ॥ ७० ॥ विग्घावरणे सुदुमो, मणु तिरिच्या सुहुम विगल तिग प्रान ॥ वेवि बक्क म मरा, निरया नकोय नरल डुगं ॥ ७२ ॥ तिरि डुग नियं तमतमा, जिण मविर य निरय विगि थावरयं ॥ प्रासु मायवसम्मो, वसाय थिर सुह जसा सियरा ॥२॥ तस वन्न ते चन मणु, खगइ डुग पणिदि सास परघुच्चं ॥ संघयणा गि इ नपु थी, सुजगि चरति मित्र चन गइ ॥ १३ ॥ चन ते वन्न वेणि, अ नाम कोस सेस धुवबंधी ॥ घाई अजदन्नो, गोए डुविदो इमो चन्दा ॥ ७४ ॥ सेमि हुदा इग डुग, गुधाइ जानवांत गुणिआणू ॥ खंधा नरलो चि वग्गणान तदप्रगदातिरिया ||१२|| एमेव विजवाहा, र ते जासाणु पाए | म कम्मे ॥ सुदुमा कमावगाहो, ऊणूणं गुल असंखंसो ॥७६॥ इक्विक दिया Jain Educationa international For Personal and Private Use Only ग्रंथ ५ ॥ ७० ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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