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Halलोग समा ॥ अन्नवसाया अहिया, सत्तसु आजसु असंख गुणा ॥५५॥ ग्रंथ ५
अथोत्कृष्टस्थित्यंतरबंधमाद ॥ तिरि निरय तिजोयाणं, नरनवजुअ सच उपल्ल तेसहं॥ थावर चन ग विगला, यवेसु पणसीइ सय मयरा ॥५६॥ अपढम संघयणा गिइ, खगई अण मित्र उनग थीण तिगं॥निअ नपु शनि उतीसं, पणिंदि सुप्रबंध विश परमा ॥५॥ विजयाश्सु गेविजो, तमाश् दहि ।। सय उत्तीस तेसहं ॥ पणसीइ सयय बंधो, पल्लतिगं सुर विनवि उंगे ॥५॥ समया दसंख कालं, तिरि उग नीएसु आउ अंत मुद॥ नरलि असंख पर द्या, साय हिश पुत्व कोडूणा ॥ ५॥ जलदि सयं पणसीयं, परघुस्सासे पणिदि तस चनगे॥ बत्तीसं सुद विदगइ, पुम सुन्नग तिगुच्च चनरंसे ॥६॥असुदख ।
गइ जाइ आगिइ, संघयणा हारनिरयुजो य जुगं ॥ थिर सुन्न जस थावर द ॥६॥ N|स, नपुश्बी छ जुअल मसायं ॥६॥ समयादंत मुहुत्तं, मणु उग जिण वर
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