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कोमि नदिगो॥बंधो नहु हीणो नय, मिडे नवियरसन्निमि॥४॥ जइ खहु । बंधो बायर, पऊ असंख गुण सुहुम पजादिगो॥ एसि अपजाण सहू, सुहमे अर अपऊ पङ गुरु॥धणालहु बिअ पज अपजो,अपछि अर बित्र गुरु अदिगो एवं ॥ ति चन असन्निसु नवरं,संख गुणा बिअ अमण पजे ॥ould तो जव जिहो बंधो, संख गुणो देस विरय दस्सिअरो ॥ सम्म चन सन्नि, चनरो, विव बंधाणु कम संखगुणा ॥५१॥ सवाणवि जिनहिश, असुहा। जं साइ संकिलेसेणं ॥ श्रावि सोदिउँ पुण, मुत्तं नर अमर तिरिआन
शासुहम निगोआइखण,प्पजोग बायरपविगल अमणमणा॥अपऊ लद पढम 3 गुरु, पजदस्सि अरो असंखगुणो ॥ ५३॥ असमत्त तमुक्कोसो, पज जदनिअर एव विगणा ॥ अपजेयर संख गुणा, परमपज बिए असंख गुणा ॥ ५४॥ पखिण मसंख गुणविरि, य अपज हि असंख
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