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॥३॥ गुरु कोडि कोमि अंतो, तिबाहाराण निन्न मुह बाहा ॥ बहु विसं । ख गुणूणा, नर तिरियाणान पल्ल तिगं॥३३॥ग विगल पुत्व कोडी, पलिया संखंस आन चन अमणा ॥ निरुवकमण उमासो, अबाद सेसाण नवंतंसो ॥ ॥३४॥ सह निबंधो संजल,ण लोह पण विग्घ नाण दंसेसु ॥ निन्न मुहुत्तं । तेअ, जसुच्चे बारसय साए ॥ ३५॥ दो ग मासो परको, संजलण तिगे पुम 5 वरिसाणि ॥ सेसाणुकोसान, मिबत्तहिए जलई ॥३६॥ अय मुक्कोसो गि दिसु, पलियाऽसंखं सहीण लहु बंधो॥ कमसो पणवीसाए, पन्नासय सहस संगुणि ॥३॥ विगल असन्निसु जिहो, कणि पक्षसंख नागूणो॥सुर नि । रयान समादस, सहस्स सेसान खुड नवं ॥३॥ सवाणवि खहु बंधे, निन्न मु
हुअ बाद आज जिछेवि ॥ केश सुरान समजिण, मंत मुहु बिंति दारं ॥ IN|॥३॥ सत्तरस समदिा किर, गाणु पाणंमि हुँति खुड्डनवा ॥ सगतीस स|
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