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कर्म०
॥ ६४ ॥
गं ॥ ६८ ॥ अन्ना मसित्ता, संजम लेसा कसाय गइ वेा ॥ मिचे तुरिए नवा, नवत्त जित्त परिणामे ॥ ६९ ॥ चन चन गईसु मीसग, परिणामुदए दि | चसु खइएहिं ॥ नवसम जुए दि वा चन, केवलि परिणामुदय खइए ॥ ७० ॥ | खय परिणामे सिन्हा, नराण पण जोगु वसम सेढीए ॥ इ पनर संनिवाइ, नेच्या वीसं असंजविणो ॥ ७१ ॥ मोदो वसमो मीसो, चनघासु अठ कम्मसु | सेसा ॥ धम्माइ पारिणामिच्ा, जावे खंधा उदइ एवि ॥ १२ ॥ सम्माइ च सु तिग चड, जावा च पणु वसामगुवसंते ॥ चजखीणा पुढे ति, न्निसेस गुण | गणगे गजिए ॥ ७३ ॥ संखिज्जेग मसंखं, परित्तजुत्त नि पय जुखं तिविदं ॥ एव मतंपि तिहा, जदन्न मधुकसा सवे ॥ ७४ ॥ बहु संखि डुच्चि, अर्ज परं मझिमंतु जागुरु ॥ जंबूदीवपमाणय, चपल परूवणाई इमं ॥ लावधि सिला, ग प डिसिलागा महासिलागरका ॥ जो सहसो गाढा,
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ग्रंथ ४
॥ ६४ ॥
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