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आदारे अर नेआ, सुर निरय विनंग मश्सु दि उगे॥ सम्मत्त तिगे पम्हा, सुक्का सन्नीसु सन्निगं ॥१७॥ तमसन्नि अपजाजुअं, नरे सबायर अपऊ ते कए॥थावर शर्गिदि पढमा, चन बार असन्नि छ विगले ॥२॥ दस चरिम । तसे अजया, दारग तिरि तणु कसाय अनाणे ॥ पढमति लेसा नविअर, अचरकु नपु मिबि सवेवि ॥१॥ पङ सन्नि केवल उग, संजम मणनाण देस | मण मीसे ॥ पण चरिम पज वयणे, तिय गवि पजिअर चकुंमि॥२॥थीन र पणिदि चरमा, चन अणदारे सन्नि उ अपजा ॥ ते सुहुम अपऊ विणा, सासणि इत्तो गुणे वुवं ॥२२॥ पण तिरि चन सुर निरए, नर सन्नि पणिंदिन
व तसि सत्वे ॥ग विगत नूदगवणे, उ एगं गई तस अनवे॥॥ वे जाति कसाय नव दस, लोने चन अजश्ऽति अनाण तिगे॥ बारस अचस्कु
चरकुसु, पढमा अदखाइ चरिम चऊ॥२३॥ मणनाणि सग जयाई, समश् ।
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