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कर्मगि उ लेस अप,ऊ बायरे पढम चन तिसेसेसु ॥ अथ बंधादीनि चत्वारि - ग्रंथ ।
धाराणि प्रारन्यन्ते ॥ सत्तठ बंधुदीरण, संतु दया अह तेरससु ॥ १० ॥ IN सत्तह बेग बंधा, संतु दया सत्त अह चत्तारि ॥ सत्त: उ पंच उगं,
नदीरणा सन्निपजत्ते ॥ ११॥ गइ दिएअ काए, जोए वेए कसाय नाणे
सु॥ संजम दंसण लेसा, नव सम्मे सन्नि आदारे॥१२॥ सुर नर तिरि निर जय गश्, ग बिअ तिअ चन पर्णिदि बकाया ॥जूजल जलणाडनिल वण, त।
सा य मण वयण तणू जोगा ॥१३॥ वेअ नरि बिनपुंसग, कसाय कोद मय
माय लोनित्ति ॥ मइ सुअवदि मण केवल, विनंग मश्सुअ नाण सागारा an४॥ सामाश्अ अ परिदा,र सुहुम अदखाय देस जय अजया ॥चरकु अ
चरकू उदी, केवल दसण अणागारा ॥२५॥ किण्हा नीला काळ, तेक पम्हा Nय सुक्क नविअरा ॥ वेअग खश्गुवसम मि, मीस सासाण सन्निअरे॥१६॥
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