________________
यई॥५४॥ गुरुनत्ति खंति करुणा, वय जोग कसायविजय दाण जुर्ज ॥ दढ । धम्माई अकाइ, सायमसायं विवजयजयानम्मग्ग देसणाम,ग्ग नासणा दे।
वदत्वहरणेहिं ॥ दंसणमोहं जिण मुणि, चेश्अ संघाइ पडिणी ॥५६॥ विहं INप चरणमोदं, कसाय हासा विसय विव समणो॥बंध निरयान महा, रंनी
परिग्गदर रुद्दो॥५॥ तिरिआन गूढदिअर्ज,सढो ससल्लो तदा मणुस्सा॥ पयई य तणुकसा, दाणरुई मसिमगुणो अ॥५॥अविरश्मा सुराज बालतवोऽकाम निरोऊयश्॥ सरखो अगार विल्लो, सुहनामं अन्नहा अ सुदं ॥णा गुण पेदीमय रहिर्ज, अनयण नावणा रुई निच्चं ॥ पकुण जि णाश्नत्तो, उच्चं नीअं अरदा ॥६० ॥ जिणपूआविग्घकरो, हिंसाइपराय णो जय विग्धं ॥श्य कम्मविवागोयं, लिदिउँ देविंदसूरीहिं॥६१॥ इति कर्मविपाकनामा प्रथमः कर्मग्रंथः समाप्तः॥१॥ ॥॥ ॥॥
Jain Educational
For Personal and Private Use Only
ne baryong