SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्म० ॥ ५४ ॥ Jain Educationa गुरु न बहु, जायइ जीवस्स अगुरु लहु उदया || तिढेण तिदुच्प्रणस्स वि, पुको से दर्ज के लिए ॥४७॥ अंगोवंग नियमि, निम्माणं कुणइ सुत्तदा | रसमं ॥ उवघाया नव दम्मइ, सतणु अवयवलंबि गाईहिं ॥ ४८ ॥ विति चन पणिदितस्सा, वायर बायरा जिच्या थूला ॥ नि नि पत्ति जुआ, प | आत्ता व किरणेहिं ॥४॥ पत्ते अ तणू पत्ते,उदरणं दंतव्य हिमाइ थिरं ॥ ना जुवरि सिराइ सुदं, सुनगाउं सवजाइो ॥२०॥ सुसरा महुर सुहझुणी, या इजा सघलो गिनवर्ड | जस जस कित्ती, यावर दसगं विवचं ॥ ॥ ५२ ॥ गो उच्च नी, कुलाल इव सुघड गुंजलाई ॥ विग्धं दाणे लाने, जोगु व जोगेसु विरिए ||२|| सिरि दरि समं एत्र्यं, जद पडिकूले ते | रायाई ॥ न कुणइ दाणाई अं, एवं विग्घेण जीवो वि॥५३॥ पडिणी प्रत्तण नि न्हव, उवघाय पर्जस अंतराएणं ॥ अच्चा सायणयाए, आवरण डुगं जिर्ज ज nal Psional For Personal and Private Use Only ग्रंथ १ ॥ ५५ ॥ Jainelibrary.org
SR No.600176
Book TitleLaghu Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy