________________
कमा
ग्रंथ
॥५५॥
॥ श्री जिनाय नमः॥ अथ श्रीफितीयकर्मग्रंथप्रारंनः ॥ आर्याटत्तम् ॥ तह थुणिमो वीरजिणं, जह गुणगणेसु सयलकम्मा ॥ बंधुदयोदीरणया, सत्ता पत्ताणि खवित्राणि ॥२॥ मि सासणमीसे, अविरय देसे पमत्त अपम । |त्ते॥निअट्टि अनिअघि सुह,मुवसम खीण सजोगि अजोगि गुणा ॥२॥ निनव कम्मग्गदणं, बंधो उदेण तव वीस सयं ॥ तियरा दारग उग, वर्धा मिमि सतर सयं ॥३॥ नरय तिग जाइ थावर,चन हुँमा यव विवह नपु मि.
॥सोलं तो गहिअसय, सासणि तिरि थीण उग तिगं ॥४॥ अण मला गि संघय,ण चन नि नजोअ कुखगइ बित्ति ॥ पणवीसंतो मीसे, चनसयरि । उहागअ अबंधा॥५॥ सम्मे सग सयरि जिणा, जबंधि वश्र नर तिअ बित्र कसाया॥ उरल गंतो देसे, सत्तही तिय कसायं तो॥६॥ तेवहि पमत्ते सो, ग अरश् अथिर उग अजस अस्सायं ॥ वुबिऊ उच्च सत्तव, नेइ सुराजे जया
५५ !
Jain Educationale la
For Personal and Private Use Only
Mainelibrary.org