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| ई.ना न पश्यं ते, बदरत्ना वसुंधरा ॥१॥ लावार्थः-पगले पगले निधान एटले धनना नं।
माराने अने योजने योजने रसकुंपिका प्रत्ये, नाग्यहिन पुरुषो नश्री जोई शकता; परंतु * पृथ्वी तो बहु रत्नवाली बे.॥१॥ एह की अह निशि तुमे रे सु०, शू राखो गे रोश ॥
पू० ॥ राजाथी मवर धरे रे सु०, रांकने पीमतो सोश ॥५०॥॥ नांखी पिण लागे नहीरे है। सुरु, सूरज साहमी खेह ॥ पू॥ स्वान अमर्ष थकी नसे रे सुण, पिण गज सम किम तेह ॥पू०॥णा मृग मृगपति तुलना करे रे सुण, गुंजा कनकथी जेम ॥पू०॥ नत्पल खंग ४ मणि रत्नश्री रे सु०, उर्जन सहान तेम ॥पू०॥१०॥ नवलख ताराथी नही रे सु०, तेज प्र * काश पमूर । पू०॥ करे नद्योत अवनी तले रे सु, अंबर उग्यो सूर ॥ पू० ॥ ११ ॥ अवगु ।
राने आदर नही रे सु०, गुणवंतो पूजाय ॥ पू०॥ गुणवंता पंकज प्रते रे सु०, मस्तके राखे
राय ॥ ५० ॥ १२ ॥ साहसिक गुणे एकलो रे. सु, रखवाले वन सिंह ॥ पू० ॥ शेषनाग पि Vण सत्वधी रे सु०, धारे धरा निरबीह ॥३०॥ १३ ॥ मन्चरथी दुःख पामीए रे सुष, म | [ चर कलह नंमार ॥ पू०॥मबर नरकनुं बार| रे सु०, मछरे नदी नव पार ॥पू०॥१४॥
रुक्षचार्य तणी परे रे सु, मत्ररथी उख दंद ॥ पू०॥ ढाल पंदरमी एथई रे सु, जिन कहे त हे वचन अमंद ॥ पू० ॥१५॥
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